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साइबर सुरक्षा पर चिंतन

नई दिल्ली में आयोजित वैश्विक साइबर सम्मेलन (जीसीसीएस- ग्लोबल कॉन्फ्रेंस ऑन साइबर स्पेस) से साइबर सुरक्षा की महत्वपूर्ण चुनौती पुन: चर्चा के केंद्र में आई है। जीसीसीएस का यह पांचवा संस्करण है, लेकिन इसका इतने बड़े पैमाने पर पहले कभी आयोजन नहीं हुआ। पहली बार इसमें 124 देशों के प्रतिनिधि शिरकत कर रहे हैं। इस कॉन्फ्रेंस में 10 हजार से अधिक अंतरराष्ट्रीय नेता, नीति निर्माता, औद्योगिक विशेषज्ञ, थिंक टैंकों के सदस्य और साइबर जानकार आए हैं। आशा है कि इस चर्चा से जो बातें सामने आएंगी, वो खासकर भारत के लिए बहुत उपयोगी होंगी, जहां डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने को सरकार ने अपना मिशन बनाया हुआ है।

भारत सरकार तमाम जरूरी सेवाओं को 'आधार से जोड़ने, बैंकिंग व वित्तीय लेन-देन को अधिक से अधिक डिजिटल तकनीक पर आधारित करने, ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने, यहां तक कि शिक्षा में ई-बस्ता और ई-पाठशाला जैसी परियोजनाओं को लागू करने की महत्वाकांक्षी योजनाओं को आगे बढ़ा रही है। इसमें वह तभी सफल हो सकती है, जब इंटरनेट से जुड़े तमाम क्षेत्रों में अभेद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो। लेकिन साइबर सुरक्षा का दायरा वैश्विक है। इस तकनीक की प्रकृति ऐसी है कि कहीं बैठा हुआ कोई शख्स किसी दूसरे देश में भी उथल-पुथल मचा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस आह्वान को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि हमारे समाज के कमजोर तबके साइबर अपराधियों का शिकार न बन जाएं, विश्व समुदाय को इसे जरूर सुनिश्चित करना चाहिए।

दरअसल, इंटरनेट ने आमजन को असीमित सुविधाएं तो दी हैं, लेकिन इसकी वजह से कई खतरे भी खड़े हुए हैं। उनमें आतंकवादी मकसदों से इस माध्यम का इस्तेमाल भी एक है। जीसीसीएस का उद्घाटन करते हुए मोदी ने इस तरफ ध्यान खींचा। कहा कि डिजिटल स्पेस को आतंकवाद और चरमपंथ की काली ताकतों के खेल का मैदान नहीं बनने दिया जाना चाहिए। भारत के रुख को और स्पष्ट करते हुए सूचना तकनीक मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भारत इस सम्मेलन के जरिए दो प्रमुख संदेश देना चाहता है- 'सुरक्षित साइबर-सुरक्षित दुनिया और 'समावेशी साइबर-विकसित दुनिया। स्पष्टत: भारत चाहता है कि यह आयोजन साइबर स्पेस पर सार्थक भागीदारी और संवाद का मंच बने। साइबर स्पेस से मोटे तौर पर आशय कंप्यूटर नेटवर्कों के विश्वव्यापी जाल से है। इस नेटवर्किंग के जरिए एक आभासी दुनिया बनी है। यानी एक ऐसा विश्व, जिसका भौतिक अस्तित्व नजर नहीं आता, लेकिन जो आज तमाम संपर्कों का माध्यम है। आज हमारी तमाम गतिविधियां इसी दुनिया के जरिए संचालित हो रही हैं। अपराधी इसमें सेंध लगाकर एक साथ अनगिनत लोगों को नुकसान पहुंचाते हैं, निजता में दखल देते हैं। पिछले वर्ष अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के बाद सामने आया कि ऐसे अपराधों के सियासी आयाम भी हो सकते हैं। इसलिए साइबर दुनिया को सुरक्षित बनाना आज विश्व की प्राथमिक चुनौती है। नई दिल्ली में आयोजित सम्मेलन को भारत ने इसी तरफ सबका ध्यान खींचने का मौका बनाया है।

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